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Politics

विपक्ष ने तमिलनाडु गवर्नर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सराहा, राज्यों की जीत बताया

  • PublishedApril 9, 2025

नई दिल्ली : विपक्षी दलों ने मंगलवार (8 अप्रैल) को डीएमके के साथ मिलकर सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले का स्वागत किया, जिसमें कहा गया कि सरकारों द्वारा पारित विधेयकों पर राज्य के राज्यपालों की लंबे समय तक निष्क्रियता गलत और अवैध है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्यपाल आरएन रवि के खिलाफ याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आदेश सुनाए जाने के कुछ देर बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन ने राज्य विधानसभा को बताया, ‘कुछ ही पल पहले हमारी सरकार को सर्वोच्च न्यायालय से एक ऐतिहासिक निर्णय प्राप्त हुआ… यह आदेश केवल तमिलनाडु के लिए ही नहीं, बल्कि भारत के सभी राज्यों के लिए एक बड़ी जीत है.’

उन्होंने इसे संघवाद, राज्यों की स्वायत्तता और द्रविड़ राजनीति की पुष्टि भी बताया. उन्होंने कहा, ‘राज्य की स्वायत्तता और संघवाद के लिए लड़ाई जारी रहेगी… और तमिलनाडु इसमें जीतेगा.’

एक सोशल मीडिया पोस्ट में तमिलनाडु के सीएम स्टालिन ने कहा, ‘यह संघ और राज्य के संबंधों में संतुलन बहाल करने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है और वास्तविक संघीय भारत की स्थापना के लिए तमिलनाडु के निरंतर संघर्ष में एक ऐतिहासिक जीत है.’

स्टालिन के बेटे और उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने एक्स पर पोस्ट किया कि राज्य की कानूनी लड़ाई ने एक बार फिर पूरे देश को रोशनी दी है और सीएम स्टालिन ने एक बार फिर राज्य के अधिकारों की रक्षा करने और देश पर एकात्मक संरचना थोपने के प्रयासों का विरोध करने की अपनी दृढ़ प्रतिबद्धता में एक महत्वपूर्ण जीत दर्ज की है.

डीएमके के राज्यसभा सांसद और सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता पी विल्सन ने भी ‘डीएमके सरकार की बड़ी जीत’ की सराहना की.

तमिलनाडु में एआईएडीएमके और भाजपा को छोड़कर सभी अन्य दलों ने भी फैसले का स्वागत किया. दोनों दलों की चुप्पी पर कटाक्ष करते हुए सदन के नेता दुरईमुरुगन ने कहा, ‘इस ऐतिहासिक घटनाक्रम पर चुप रहने वालों को इतिहास में इस फैसले के खिलाफ़ ही माना जाएगा.’

केरल, झारखंड ने इसे ‘लोकतंत्र की जीत’ कहा

मालूम हो कि समान मामले में ही मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के नेतृत्व वाली केरल सरकार भी कई विधेयकों को रोकने वाले पूर्व राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची है.

ऐसे में सीएम विजयन ने इस फैसले को ‘लोकतंत्र की जीत’ और ‘विधानसभा की शक्तियों को हड़पने की राज्यपालों की प्रवृत्ति के खिलाफ एक चेतावनी’ बताया.

मुख्यमंत्री विजयन ने इस मामले में तमिलनाडु के साथ केरल की समानताओं की ओर इशारा किया, ‘जहां राज्यपाल द्वारा विधेयकों की मंजूरी को करीब 23 महीने तक रोक कर रखा गया था’ और अब राज्य इस पर लंबे समय से कानूनी लड़ाई लड़ रहा है.

सीएम विजयन ने कहा, ‘यह फैसला केरल द्वारा उठाए गए ऐसे मुद्दों के महत्व को रेखांकित करता है, न्यायालय ने संघीय व्यवस्था और विधानसभा के लोकतांत्रिक अधिकारों को बरकरार रखा है.’

केरल के मंत्री पी. राजीव और के राजन ने भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हुए बयान जारी किए.

राजीव ने संवाददाताओं से कहा कि विधेयकों को रोकने के खिलाफ केरल द्वारा दिए गए लगभग सभी तर्क तमिलनाडु की याचिका में शामिल किए गए थे.

उन्होंने बताया कि जब आरिफ खान केरल के राज्यपाल थे, तब विधानसभा द्वारा 2022 से 2023 तक पारित आठ विधेयक राजभवन में लंबित थे. खान द्वारा न तो इन विधेयकों को अपनी स्वीकृति दी गई और न ही उन्हें राष्ट्रपति के पास भेजा गया, जिसके बाद केरल सरकार ने नवंबर 2023 में उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि राज्यपाल ‘कानून बनाने की सामान्य प्रक्रिया को बाधित नहीं कर सकते’, जिसके बाद खान ने एक विधेयक को मंजूरी दे दी और सात को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेज दिया.

पिछले साल, राष्ट्रपति ने चार विधेयकों को मंजूरी दे दी थी, लेकिन तीन के लिए मंजूरी रोक दी गई थी, जिसमें केरल में विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के पद से राज्यपाल को हटाने की परिकल्पना भी शामिल थी.

झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), जो कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ गठबंधन में झारखंड में सत्ता में है, उसने भी एक बयान जारी कर कहा कि पार्टी इस ऐतिहासिक फैसले का तहेदिल से स्वागत करती है.

न्यायालय द्वारा यह स्पष्ट किए जाने के बाद कि राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चितकाल तक मंजूरी न देकर राजनीतिक दल की तरह काम नहीं कर सकते, झामुमो ने कहा, ‘यह निर्णय हमारे संविधान में निहित संघवाद और संसदीय लोकतंत्र के सिद्धांतों की एक शक्तिशाली पुष्टि है.’

झारखंड में राज्यपाल द्वारा लोकतांत्रिक मानदंडों के उल्लंघन में निभाई गई भूमिका की ओर इशारा करते हुए झामुमो ने कहा कि इस आदेश के निहितार्थ ‘पूरे देश में गूंजेंगे.’

ज्ञात हो कि हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली झामुमो सरकार द्वारा पारित भी कई विधेयक लंबित हैं, जिनमें 1932-निवास-आधारित स्थानीय नीति विधेयक, एसटी/एससी/ओबीसी आरक्षण वृद्धि विधेयक और भीड़ द्वारा हत्या विरोधी विधेयक शामिल हैं.

झामुमो ने कहा, ‘हम मांग करते हैं कि झारखंड के राज्यपाल सुप्रीम कोर्ट के फैसले का तुरंत संज्ञान लें.’

राजभवन के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध रखने वाली तेलंगाना सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आधिकारिक तौर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. लेकिन तेलंगाना सीएमओ के एक सूत्र ने ऑफ द रिकॉर्ड अखबार से कहा कि वे फैसले का स्वागत करते हैं ‘क्योंकि यह लोकतंत्र और संघवाद की भावना के अनुरूप है.’

सूत्र ने कहा, ‘चूंकि स्टालिन हमारे सहयोगी हैं, इसलिए हम तमिलनाडु के लिए खुश हैं.’

कांग्रेस और टीएमसी ने अदालत के फैसले को राज्यपालों के लिए स्पष्ट संदेश बताया

कर्नाटक के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री दिनेश गुंडू राव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला ‘सभी राज्यपालों को स्पष्ट निर्देश है कि वे अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर न जाएं और राज्य के नियमित प्रशासन में हस्तक्षेप न करें.’

कांग्रेस नेता ने कहा, ‘हमने देखा है तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक…जहां भी विपक्ष शासित राज्य हैं, वहां राज्यपालों का व्यवहार कितना खराब रहा है और मोदी सरकार ने उनका किस तरह दुरुपयोग किया है.’

मालूम हो कि वर्तमान में कर्नाटक में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा पारित 13 विधेयक राज्यपाल की मंजूरी के लिए लंबित हैं. इनमें से चार विधेयक राज्य सरकार ने जुलाई 2024 में पारित किए थे, दो विधेयक इस साल के अंत में शीतकालीन सत्र के दौरान पारित किए गए थे, जबकि नौ विधेयक पिछले महीने बजट सत्र के दौरान पारित किए गए थे.

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के प्रवक्ता जय प्रकाश मजूमदार ने भी इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश ‘गैर-भाजपा सरकारों को परेशान करने और नियंत्रित करने के प्रयास में राज्यपाल के संवैधानिक पद के असामान्य उपयोग को दर्शाता है.’

ज्ञात हो कि पश्चिम बंगाल में पार्टी सरकार और राजभवन के बीच लगभग निरंतर टकराव देखने को मिलता रहा है.

इस बीच मजूमदार ने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि नरेंद्र मोदी सरकार इस आदेश से साहसिक और स्पष्ट संदेश लेगी कि भारत में कहीं भी राज्यपालों का ऐसा आधिपत्य बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.’

केरल-पंजाब का मामला भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा

गौरतलब है कि विधेयकों को रोकने का अकेला मामला तमिलनाडु का नहीं है बल्कि बीते सालों में केरल और पंजाब सरकार ने भी राज्यपाल के ऐसे रुख के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. केरल सरकार ने मार्च 2024 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका में कहा था कि तत्कालीन राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने विधानसभा से पारित हो चुके सात विधेयकों को दो साल तक लंबित रखने के बाद बिना किसी कारण बताए राष्ट्रपति के पास भेज दिया.

केरल सरकार की ओर से कोर्ट में कहा गया कि राज्यपाल के फैसले से विधानसभा का कामकाज बाधित हुआ और लंबे वक्त तक लंबित रहने की वजह से ये विधेयक निरर्थक हो गए. याचिका में दलील दी गई थी कि राज्यपाल की ओर से इन विधेयकों पर ‘यथाशीघ्र’ फैसला न लेने की वजह से ये बिल अप्रभावी हो गए.

इस पर कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताते हुए पंजाब सरकार के मामले में दिया अपना फैसला दोहराया और कहा कि राज्यपाल अपनी शक्ति का प्रयोग विधायिका की ओर से बनाए गए कानून को रोकने के लिए नहीं कर सकते.

सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया था कि केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को पंजाब राज्यपाल के मामले में जारी अदालत के फैसले का अध्ययन करना चाहिए, जिसमें राज्य विधानसभाओं द्वारा उनकी सहमति के लिए भेजे गए विधेयकों के संबंध में राज्यपालों की शक्तियों और संबंधित कर्तव्यों का विवरण दिया गया है.

फिलहाल, ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.

इससे पहले पंजाब सरकार ने भी राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित पर ऐसे ही आरोप लगाते हुए नवंबर 2023 में सर्वोच्च अदालत का रुख किया था. तब अदालत ने राज्यपाल को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था कि राज्यपालों को यह बात ध्यान रखनी चाहिए, वह चुने हुए प्रतिनिधि नहीं हैं. कोर्ट ने आगे कहा था कि सदन बुलाने को लेकर राजनीतिक दलों को सुप्रीम कोर्ट तक आना पड़ता है, जबकि यह मुद्दा राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच सुलझाया जाना चाहिए.

गौरतलब है कि पुरोहित के खिलाफ दायर एक ऐसी ही याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर कोई राज्यपाल किसी विधेयक पर सहमति रोकने का फैसला करता है, तो उसे विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधायिका को वापस करना होगा.

अदालत ने मौखिक रूप से यह भी कहा था कि राज्य सरकार द्वारा अदालत का रुख करने के बाद ही राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर कार्रवाई करने की प्रवृत्ति बंद होनी चाहिए.

राज्यपाल के खिलाफ पंजाब सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रेखांकित किया है कि ‘राज्य के एक अनिर्वाचित प्रमुख के रूप में राज्यपाल को कुछ संवैधानिक शक्तियां सौंपी गई हैं’, लेकिन ‘इस शक्ति का उपयोग राज्य विधायिका (सरकार) द्वारा कानून बनाने की सामान्य प्रक्रिया को विफल करने के लिए नहीं किया जा सकता है’.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि ‘राज्यपाल को किसी भी विधेयक को बिना किसी कार्रवाई के अनिश्चितकाल तक लंबित रखने की आजादी नहीं दी जा सकती.

इसमें कहा गया था, राज्यपाल ‘एक प्रतीकात्मक प्रमुख हैं और वे राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई नहीं रोक सकते’.

इस बात पर जोर देते हुए कि राज्यपाल के विवेक पर नहीं सौंपे गए क्षेत्रों में बेलगाम विवेक का प्रयोग राज्य में लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार के कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव डालने का जोखिम उठाता है.

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